साथ तुम्हारा मुझको ऐसा लगता है मरुथल मे ज्यूँ मीठा दरिया लगता है सामने तेरे खिला खिला सा लगता है दूर गए तो मन मुरझाया लगता है तुझ में कुछ ऐसे मिलता जाता हूँ, ज्यूँ शक्कर पानी में घुलता सा लगता है क्यूँ लगता है कुछ जाना पहचाना सा चाँद बता तू कौन हमारा लगता है तन चंदन है ओठ गुलाबी बिल्कुल तू बर्फीले शोले के जैसा लगता है कागज़ पर शब्दों से चित्र उकेरे है पंकज इक शायर दीवाना लगता है एक तरही ग़ज़ल....मिसरा-ए-तरह कैफ़ भोपाली साहब की ग़ज़ल से है- "चाँद बता तू कौन हमारा लगता है"