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घनाक्षरी छंद की कविता फोनवा पे बतियाए,रही रही खिसि

घनाक्षरी छंद की कविता
फोनवा पे बतियाए,रही रही खिसियाए,
दांते ओढ़नी दबाए,गाल छुए केशिया।

रही देखे गुजरिया, बुढ़ओ मारे नजारा,
जब चलेलू रहिया,लोग मारे सिटिया।

©Amit Pandey
  #घनाक्षरी छंद की कविता
amitpandey5769

Amit Pandey

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