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बचपन का शौक़ छोटी उमर थी जब हमारी, हुआ करता था क्र

बचपन का शौक़

छोटी उमर थी जब हमारी, हुआ करता था क्रिकेट खेलने का बड़ा भारी शौक़,
मैदान हो या घर का कमरा, आता था हमारे हुनर का मौसम तो बेरोक-टोक,
बस ये खेल था कमज़ोरी, वरना बड़ों की बात मानने में, हम थे श्रवण कुमार के भी आगे,
पर हुए कभी पिटाई के आसार, तो है याद किस कदर फ़र्राटे से थे भागे,
वहीं मेहमान कमरे में टांड़ पे रखी थीं, नई लायी वो मूर्तियाँ राजस्थानी,
हमारी हरकतों को अच्छे से जान, हमें चेतावनी मिली वहाँ ना करना मनमानी,
तब तय किया सिर्फ़ मैदान में जंग होगी, और किनारे रख दिया वो गेंद-बल्ले का खेल,
पर गुज़रते थे बगल से, तो लगता था हमें आवाज़ दे रही है, गेंद बन वीराना की चुड़ैल,
एक मासूम गेंद से किसी का क्या बिगड़ जाएगा, ये ख़्याल दिमाग़ में बत्ती सा जगा,
सोचा सिर्फ़ कैच-कैच खेल लेते हैं बरामदे में, जो मेहमान कमरे के दरवाज़े से था लगा,
अरसे गुज़र गए, कैच-कैच के क्रिकेट में हो रहा था, सचिन सा खिलाड़ी तैयार,
और उसी धुन में गेंद ऐसी उछली हवा में, के छत पे लगे पँखे से जा लड़ी ज़ोरदार,
घूमते पँखे से गेंद घुसी मेहमान कमरे में, और वहाँ रखे सोफ़े के कंधे से जो ऊँची उछाल मारी,
टांड़ पे रखी मुर्तियों को भनक न लगी, और गूँज गयी घर में एक आवाज़ भयंकर हाहाकारी,
उसी एक पल आने वाली अनचहीती घटनाओं की तस्वीर, आँखों के सामने चल पड़ी,
और पलक झपकते हमारी सवारी, हवा के पँखों पे सवार, फिर एकबार गुमशुदा होने निकल पड़ी।
 #बचपनकाशौक़ #शैतानियां #yqdidi #yqbaba #yqhindi #yqtales #yqdiary
बचपन का शौक़

छोटी उमर थी जब हमारी, हुआ करता था क्रिकेट खेलने का बड़ा भारी शौक़,
मैदान हो या घर का कमरा, आता था हमारे हुनर का मौसम तो बेरोक-टोक,
बस ये खेल था कमज़ोरी, वरना बड़ों की बात मानने में, हम थे श्रवण कुमार के भी आगे,
पर हुए कभी पिटाई के आसार, तो है याद किस कदर फ़र्राटे से थे भागे,
वहीं मेहमान कमरे में टांड़ पे रखी थीं, नई लायी वो मूर्तियाँ राजस्थानी,
हमारी हरकतों को अच्छे से जान, हमें चेतावनी मिली वहाँ ना करना मनमानी,
तब तय किया सिर्फ़ मैदान में जंग होगी, और किनारे रख दिया वो गेंद-बल्ले का खेल,
पर गुज़रते थे बगल से, तो लगता था हमें आवाज़ दे रही है, गेंद बन वीराना की चुड़ैल,
एक मासूम गेंद से किसी का क्या बिगड़ जाएगा, ये ख़्याल दिमाग़ में बत्ती सा जगा,
सोचा सिर्फ़ कैच-कैच खेल लेते हैं बरामदे में, जो मेहमान कमरे के दरवाज़े से था लगा,
अरसे गुज़र गए, कैच-कैच के क्रिकेट में हो रहा था, सचिन सा खिलाड़ी तैयार,
और उसी धुन में गेंद ऐसी उछली हवा में, के छत पे लगे पँखे से जा लड़ी ज़ोरदार,
घूमते पँखे से गेंद घुसी मेहमान कमरे में, और वहाँ रखे सोफ़े के कंधे से जो ऊँची उछाल मारी,
टांड़ पे रखी मुर्तियों को भनक न लगी, और गूँज गयी घर में एक आवाज़ भयंकर हाहाकारी,
उसी एक पल आने वाली अनचहीती घटनाओं की तस्वीर, आँखों के सामने चल पड़ी,
और पलक झपकते हमारी सवारी, हवा के पँखों पे सवार, फिर एकबार गुमशुदा होने निकल पड़ी।
 #बचपनकाशौक़ #शैतानियां #yqdidi #yqbaba #yqhindi #yqtales #yqdiary