कहने को तो वो है पुरुष लेकिन रखता है कोमल मन अपने अंतस में नहीं जाहिर होने देता पीड़ा अपने मन की खामोश रहकर उठाता रहता है जिम्मेदारियां अपने पुरुष होने की। उसे पसंद नहीं बिना पूछे अपनी परेशानी बताना ना ही बिना माँगे मदद स्वीकार करना। वो अपना रास्ता खुद खोजता है चुप रहकर, सोच समझ कर उसका स्वाभिमान उसे रोकता है किसी के सामने हाथ फैलाने से, रोने से और अपनी परेशानी बताने से इसका मतलब ये नहीं कि उसे किसी की जरुरत नहीं, वो भी चाहता है कि कोई उसकी बात सुने - समझें उसकी इच्छाओं, आकांक्षायों को पहचाने उसके काम और जिम्मेदारी को सराहे लेकिन हर बार उसे उसके पुरुष होने के नाम पर भरमाया जाता है कि रोना पुरुष की निशानी नहीं, अहसान जताने का नहीं भले ही वो कितना भी कर लें परिवार, समाज और दुनिया के लिये। #travelwithkapilkumar #safarnamabykapilkumar #travel_with_kapil_kumar