मेरे विचारों की श्रृंखला में सर्व समाया रहता हैं, औनेपाने दामों में ना बिकता वो तथ्य समाया रहता हैं | मैं करती हूं कटाक्ष तो प्रेम भी लिख जाती हूं, माँ के आँचल में लिपटी ममता भी बतलाती हूं| मैं जो लिखती व्यंग कुरीति पर, तो नारी का वर्चस्व भी बढ़ाती हूं, मैं शब्दों के बाणों से यूँ ना तीर चलाती हूं, मैं लिखती जो गीत कोई तो बोल मधुर सुनाती हूं| मैं जो लिखती शहर की गलियां, तो गाँव की माटी भी लिख जाती हूं, बचपन से यौवन का सफर, तो बुढ़ापे की परिपक्वता समझाती हूं| कुछ भी बेबुनियाद नहीं, सब कुछ बेबाकी से बतलाया जाता हैं, मेरे विचारों की श्रृंखला में सर्व समाया रहता हैं, औनेपौने दामों में ना बिकता वो तथ्य समाया रहता हैं | ©Sonam kuril #mere_vichar मेरे विचारों की श्रृंखला में सर्व समाया रहता हैं, औनेपाने दामों में ना बिकता वो तथ्य समाया रहता हैं | मैं करती हूं कटाक्ष तो प्रेम भी लिख जाती हूं, माँ के आँचल में लिपटी ममता भी बतलाती हूं|