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तुम सोचते हो क्या?वक्त न रहता किसी की पनाह, रेत स


तुम सोचते हो क्या?वक्त न रहता किसी की पनाह,
रेत सम कण कण अनवरत ही फिसल जाता यहाँ,
उठ सुसुप्तावस्था से जागृत कर सोइ अंतश्चेतना को,
न रह जाये कोई काम अधूरा,कल होता किसका भला। #Contest_21  (Hindi/उर्दू)

   💌प्रिय लेखक एवं लेखिकाओं,
‌ कृपया अपने अद्भुत विचारों को कलमबद्ध कर अपनी लेखनी से चार चांँद लगा दें।

🎀 उपर्युक्त विषय को अपनी रचना में अवश्य सम्मिलित करें

🎀 2 से 4 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें,

तुम सोचते हो क्या?वक्त न रहता किसी की पनाह,
रेत सम कण कण अनवरत ही फिसल जाता यहाँ,
उठ सुसुप्तावस्था से जागृत कर सोइ अंतश्चेतना को,
न रह जाये कोई काम अधूरा,कल होता किसका भला। #Contest_21  (Hindi/उर्दू)

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‌ कृपया अपने अद्भुत विचारों को कलमबद्ध कर अपनी लेखनी से चार चांँद लगा दें।

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