White प्रकृति कहती,यही हमसे,ज़रा सँभलो,अजी इन्साँ। सजाने घर यहाँ हमसे ,मिटाकर ना,बनो नादाँ।। यहाँ सिक्का,अजी खुद का,जमाने द्वंद जो छिड़ता। ज़रा समझा,अभी उसको,यहाँ जो व्यर्थ है भिड़ता।। ©Bharat Bhushan pathak #good_night poetry in hindi love poetry in hindi poetry lovers hindi poetry on life#poetry dil se