सामने मंज़िल थी और, सामने मंज़िल थी और, में फिर भी वही खड़ा था , सोचमे था शायद,या सब कुछ बिखरा पड़ा था। मंजिल ख़ुद पास आई थी और में खुदमे ही उलझा पड़ा था। अगर जब उसकी उंगली थाब लेता , तो दुनिया का रूख मेरे लिए अलग ही होता........... #एक#मोका#किस्मत