मर्यादित हो सोच समझ, मर्यादित हो समृद्धि, मर्यादित हो बुद्धि जिसकी, मर्यादित भी हो देवभक्ति। जीने जीने की चाह लिये, ये राष्ट्रदेव का हो अर्चन, तभी रूप सार्थक बन निकले, ये मर्यादा के राम की नवमी।। योगेश कुमार मिश्र"योगी"