तेरी सांस के सुरीले कुछ लकूरे रह गये हैं तेरी जुल्फों के मदहोश सुरूरे रह गये हैं तेरा मेरी कलम से ये मुखालिफत कैसा है तेरे जाने से कुछ गीत अधूरे रह गये है यहां दंगा वहां दंगा सरकारों से क्या पंगा शहर भर मे बेतकल्लुफ बे सबूरे रह गये हैं बस झूठी अजिय्यत है जिन्हें मुल्क के नाम पे उतार फेंकें है शर्म वो जमूरे रह गये हैं छह बज गए दफ्तर के सभी बाबू घर जा चुके कारखाने मे अब भी कुछ मजूरे रह गये हैं गिरती जिंदगी-ए-खिश्त की यह कैफ़ियत कैसी फुर्कतो मे अब भी 'कुंअर ' हुजूरे रह गये हैं कुंअर अरुण Poet&writer lyricits shayar तेरी सांस के सुरीले कुछ लकूरे रह गये हैं तेरी जुल्फों के मदहोश सुरूरे रह गये हैं तेरा मेरी कलम से ये मुखालिफत कैसा है तेरे जाने से कुछ गीत अधूरे रह गये है यहां दंगा वहां दंगा सरकारों से क्या पंगा शहर भर मे बेतकल्लुफ बे सबूरे रह गये हैं