White कठपुतली सी जिंदगी, डोर किसी और के हाथ। चलना है उसकी मर्ज़ी, खो जाती अपनी बात। कभी हंसाए, कभी रुलाए, जो चाहे वो कराए, हम बस खेलते हैं किरदार, पर खुद को नहीं पा पाए। रंग-बिरंगी ये दुनिया, सपनों का बाजार, पर पीछे छिपी हैं डोरें, जो करती हैं वार-पार। हर कदम पे नाचते हैं, पर क्यूँ नाचते हैं हम, क्या यही है जिंदगी का सच, या फिर कोई भ्रम? कभी तोड़ें ये डोर, उड़ें आजाद गगन में, खुद के फैसले खुद लें, रहें अपने ही तन-मन में। कठपुतली नहीं हम, इंसान हैं अपनी पहचान से, चलें उस राह पर, जो शुरू हो अपने अरमान से। ©aditi the writer #कठपुतली आगाज़