यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में, ये कमजोर पत्तियां। प्रात की ओस लिए, भोर की आस लिए, दिनमान को समेटे, असंख्य रश्मियों में लिपटी, नए कोंपल को जगह देती, ये उदार पत्तियां। यूं ही नहीं बिखरती बेलों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। थीं कभी शान वटों की, थिरकती थीं संग बसंत के, करती थीं मनुहार बादलों से, सावन में बरसने को, अनगिनत स्वप्न सजाती, ये तरुणायी में पत्तियां। यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से, ये उदास पत्तियां। यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। ©DrNidhi Srivastava #Poetry #poetrycollection #fyp #foryoupage #HindiPoem