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तू विकराल है।। तू कालजयी, तू विकराल है। तू मनुज क

तू विकराल है।।

तू कालजयी, तू विकराल है।
तू मनुज का कवच तू ढाल है।
तू मेघनाद की गर्जना,
तू विभीषण की अर्चना।
सागर को राम की ललकार है,
तू ही अंगद का पदभार है।
मंथरा सा तू चपल है,
भरत सा तू अटल है।
तू जटायु तू जामवंत है,
तू बाल्मीक, तू सन्त है।
लक्ष्मण सा भ्राता है तू,
रक्षक तू ही, त्राता है तू।
केवट तू ही, सबरी तू ही,
वानर कभी, प्रहरी तू ही।
तू ही शिवभक्त रावण कभी,
रामन्कित पत्थर पावन कभी।
स्वबल से अनजान है तू,
तू बली, हनुमान है तू।
शक्ति अपनी जान ले,
निज से निज का ज्ञान ले।
ब्रह्म है तू, तू ज्ञान है,
तू सर्व शक्तिमान है।

©रजनीश "स्वछंद" तू विकराल है।।

तू कालजयी, तू विकराल है।
तू मनुज का कवच तू ढाल है।
तू मेघनाद की गर्जना,
तू विभीषण की अर्चना।
सागर को राम की ललकार है,
तू ही अंगद का पदभार है।
तू विकराल है।।

तू कालजयी, तू विकराल है।
तू मनुज का कवच तू ढाल है।
तू मेघनाद की गर्जना,
तू विभीषण की अर्चना।
सागर को राम की ललकार है,
तू ही अंगद का पदभार है।
मंथरा सा तू चपल है,
भरत सा तू अटल है।
तू जटायु तू जामवंत है,
तू बाल्मीक, तू सन्त है।
लक्ष्मण सा भ्राता है तू,
रक्षक तू ही, त्राता है तू।
केवट तू ही, सबरी तू ही,
वानर कभी, प्रहरी तू ही।
तू ही शिवभक्त रावण कभी,
रामन्कित पत्थर पावन कभी।
स्वबल से अनजान है तू,
तू बली, हनुमान है तू।
शक्ति अपनी जान ले,
निज से निज का ज्ञान ले।
ब्रह्म है तू, तू ज्ञान है,
तू सर्व शक्तिमान है।

©रजनीश "स्वछंद" तू विकराल है।।

तू कालजयी, तू विकराल है।
तू मनुज का कवच तू ढाल है।
तू मेघनाद की गर्जना,
तू विभीषण की अर्चना।
सागर को राम की ललकार है,
तू ही अंगद का पदभार है।