ओंस की बूँद चेहरे पर पड़ रही थी। ओस थी और अचानक हुई बारिश के छोटे छोटे मोती रूपी बून्दे कही घास पे तो कही गुलज़ार के पत्तो पे टिकी हुई थी, मैं रात के अंधेरे में घूम रहा था, और बगीचे की पड़ रही रोशनी से ओस की बून्दे मोती जैसी लग रही थी, क्योंकी मैं जयपुर मैं रात में अकेला था और रात काफी हो गयी थी, मैं इस शहर में नया भी था, तो होटल नहीं मिल रही थी तो पार्क में चला गया, रात जैसे जैसे बढ ही थी और ओस अपना रूप बदल रहा था, पहले इक दो बून्दे सी थी, अब पुरा आवरण ओस से घिर चुका था, मैं आधी रात के बाद मैदान में जाकर देखा तो पुरा ओस से मैदान मोती जैसा टिमटिमा रहा था। और रोड़ लाइट की हल्की सी रोशना सोना पे सुहागा जैसे काम कर रही थी , इस कदर ओस को निहारत निहारत सुबह होने को आ गयी और मैं हाथ मुँह धोकर अपने गन्तव्य स्थान की और चल पड़ा । #मेरीडायकीकेकुछपन्ने #sanjaychampapur #yq #apanakalamasanjay #sanjaychampapur