कि तुम याद हो आते बहुत हो.... कि पिछली सर्दी में कि तुम्हारी मर्जी में कि तुषार की चुनरी में कि सच्ची खरी-खरी में कि इसी आसमाॅ के नीचे कि बैठे थे दोनो ऑखें मीचे कि आज इस सर्दी मे कि कंबल की गर्मी मे कि ऑखें मूदे सोचते हैं.. कि तुम याद हो आते बहुत हो... ✍प्रशान्त शुक्ला ©Prashant Shukla #Memories