तुम भी चुप रहे, मैं भी मौन था आखिर बोलते भी क्या..? निःशब्द जो थे! अभी तो देखा था...उसे रही होगी उम्र चार-पांच की सनसनाती गर्म दुपहरी की हवाएं रुका था मैं भी किसी के इंतेजार में सहसा लगा यूँ..देख रहा हो कोई आस्तीन खिंचा किसी ने... नजर मिली, निस्तब्ध होगया देख दशा इस वर्तमान की सहसा कौंधी करुणा मन में, झबरे बाल, देंह श्यामल सी तन पर फटी कुचैली कुर्ती थी जूठी पत्तल हाथ में पकड़े देख रही इस भाव से मुझे भूखी आँखें उसकी, विह्वल सी हाथ दाहिना आगे कर मेरे अधरों पर उसने अपने एक कलापूर्ण मुस्कान धरी लाचारी बेबसी भूख का संगम उन अधरों पे दिखा शिक्षा का अभिमान टूटता उसके मंदित मुस्कान में दिखा भारत का कल आज डूबता उस मोहक मुस्कान में दिखा, लाचारी का तान छेड़ता बेबस एक इंसान दिखा क्या करता..? काले जीवन से उसके हमने भी मुँह मोड़ लिया जाते जाते नन्हे हाँथों पर उसके एक काला खोटा सिक्का छोड़ दिया..। #मैं_वो_और_मेरी_कलम✍️