न जाने कितने कवि बने.. कितने साहित्य रवि बने , शब्द समूह की बीड़ा बनी.. तुम नैनो की क्रीड़ा बनी , तुम पुष्पो की डाली हो.. मधुकर की तुम माली हो , हर रस का है उद्गम तुमसे.. करुणा का अनुभव तुमसे , तुम चंद चकोर चिरैया हो.. तुम कोयल तुम गौरैया हो , तुम ही छवि का दर्पण हो.. तुम श्रृंगार को अर्पण हो , तुम ही साहित्य उजागर हो.. तुम ही काव्य प्रभाकर हो , तुम गौरी,सीता,सतभामा हो.. तुम शोभा ,कमला,रमा हो , तुम देवा की देवभक्तन हो... तुम ही देवकी,युवतीजन हो , तुम कवि का हो बिंदु सखा.. तुम्हे हमने कुछ छंद लिखा !! #स्त्रियों_का_साहित्य_में_योगदान साहित्य जब तक मौखिक परम्परा का हिस्सा था तब तक लेखन में स्त्रियों का योगदान बराबरी के स्तर पर रहा ,परन्तु इतिहास के पन्नो में उनका जिक्र भी नहीं किया गया क्योंकि उन्हें कोई जगह नहीं मिली ,अगर नारी का योगदान का मूल्यांकन साहित्य में करना हो तो वह किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है ! आज के दौर में महिलाओं ने पुरुष के मुकाबले साझेदारी निभाई है ! महिलाओं के अंदर बढ़ती चेतना और जागरूकता ने पारम्परिक छवि को तोडा है !! देखा जाये तो साहित्य में नारी की भागीदारी जिस तेजी से हो रही है उसे देखते हुए नारी की अभिव्यक्ति की सामर्थय पर हैरान होने वाली कोई बात नहीं रहेगी !! पुरुष प्रधानता के कारण कुछ कवयित्री जैसे कि गंगा ,गौरी ,सीता, सुमति, शोभा, प्रभुता, उमा, कुंवरि, उबीठा, गोपाली, गणेश देवरानी, कला, लखा, कृतगढ़ी, मानुमती, सुचि, सतभामा, जमुना, कोली, रामा, मृगा, देवा, देभक्तन, विश्रामा, जुग जेवा कीकी, कमला, देवकी, हीरा, युवती जन के शब्द बस दब कर रह गए या दबा दिए गए कोई नही जानता । इन कवित्रियों ने कविताएं लिखी थी परन्तु इनकी कवितायेँ कहाँ गयी ये कोई नहीं जानता भक्ति काल की समस्त कवियित्रियाँ स्त्री काया जनित वेदना और विद्रोह को अभिव्य्क्त करती है चाहे वो मीरा हो या लल्लेश्वरी भक्ति में भिगोई इनकी दमनकारी व्यवस्था के प्रति आक्रोश को सेहज ही पहचाना जा सकता है !! परन्तु दुःख की बात ये है की इनमे से कुछ कवयित्रियों की जानकारी है और कुछ कवयत्रियाँ मठवाद हो गयी ! उनके बारे में या उनकी लिखी कविताओं के बारे में कही भी देखने को नहीं मिलता है !!