कहानी मैं वैलेंटाइन नहीं मनाती भाग ७ #part_7 कहानी- मैं वेलेंटाइन नहीं मनाती "राक्षस!" "क्या राक्षस राक्षस कर के रह गयी हो ऐं..मैं नहीं मनाता ये वैलेंटाइन फ़ैलेन्टिने हीहीही..तुम यार समझदार लड़की होकर ऐसी बातें कर रही हो, अपना तो हर दिन ही वैलेंटाइन है" बस क्या कह सकती थी अब वो फिर एक दिन वो भी आ गया जिसने उसे बैरागन में बदल दिया..उसका राक्षस अब और उसका नहीं रहा किसी और का हो चुका था....बसंत के इंतज़ार की उसकी कठिन तपस्या का आरम्भ हो चुका था..आँखों में गहरा काजल लगाती थी कि किसी को वो तेजहीन ना दिखें बेवजह मुस्कुराती भी थी वादा जो किया था कि वो मुस्कुराएगी वो आज भी मुस्कुरा रही थी मगर निष्प्राण थी..दिलासा देती थी खुद को कि मीरा का भी तो बस विवाह ही कुंवर से हुआ था प्रेम तो कान्हा ही रहे वो भी इंतज़ार करेगी ये शरीर चाहे जिसका हो पर आत्मा सिर्फ और सिर्फ उसके राक्षस की ही रहेगी दो साल बाद आरवी भी विवाह की देहलीज़ पर खड़ी थी..मंडप के नीचे उसने वचन दिया की वो १ कर्तव्यनिष्ठ पत्नी एवं माँ बनेगी और मन ही मन कहा मगर प्रेमिका नहीं बन पायेगी..