ये साँझ का समय रवि पर्वतों के ओट में छिप जाने को धरातल ऊपर गेरुवा चादर बिखेरे कितना सुंदर अनुपम दृश्य मेरे सामने चित्रवीथि पर उमड़ रहा है।। कालिमा भी पूर्व से आकर काले- काले केश हो बिखेरे प्रियतम ने जैसे अपने सुंदर घन तिमिर में प्रेमी को आगोशित कर रही है। प्रीत लौ जलने के लिए दूर उच्च गगन में चन्द्र सम ज्योति जैसा जल रहा है, प्रीत के मंद प्रकाश में कही इस उज्ज्वल लौ में प्रीत युगल मिलन में खो रहा है, पक्षियों के युगल पेड़ों की आड़ में चहचहाट में बातें कर रहे हैं, अपनी बातों से अपने साथी को रूझा रहें हैं। उधर चकवा पंछी विरह गुंजार कर रहे है किस लिए ये रात मीठी है तो किसी को दर्द की टीस देती है जो इंतजार करता प्रभाकाल का उसका प्रियमिलन हो। कुमुदिनी अलसाई जाग रही हैं रात के कीटों के झुंड दीया सम समझकर ऊपर से उड़ कर नयनों के तृप्त कर रहें हैं।।