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(मन की बाते) कभी कभी मन मे आता है कि सबकुछ छोड़कर स

(मन की बाते)
कभी कभी मन मे आता है कि सबकुछ छोड़कर सबसे दूर चले जाएं मगर सबसे बड़ा सवाल यही की जाए तो कहा जाए,ऐसा हर बार विचार आता है रोज यही सोच के सो जाते है  कि कल तो पक्का कही चले जाएंगे फिर सोचते है कि ....बच्चे मेरे बिना क्या करेंगे कैसे रहेंगे उनके लिए भोजन  कौन बना के खिलायेगा उनको डॉट के कौन भोजन करायेगा ,मेरी सासु मम्मी को कौन भोजन करायेगा मेरे बिना वो तो और परेशान हो जायेगी कैसे रहेगी और ये कैसे रहेंगे मेरे बिन, ये रोज सोच के सो जाती हूं कान्हा जी को रोज बोल के सो जाती हँ की हे ईश्वर क्या करूँ तुम्ही रास्ता दिखाओ कहा हो मुरली मनोहर ,अब ऐसे बोलते  आँख लग गयी तो सपने में साक्षात लड्डू गोपाल  को देखा जो रोज की तरह मुस्कुरा रहे थे और ये एहसास हुआ कह रहे हो कि पगली तू कहा जायेगी सबको छोड़के ये कान्हा जी वैसे ही है जब मन को मनाओ की अब नही तो मुस्कुरा के मन को अपने  तरफ खिंच ही  लेते है  अब तो ये जिंदगी वैसे ही हो गयी गुस्सा होती हूं तो प्रभु की छबि सोचकर रुक जाती हूं तुरन्त मान जाती हूं आज कान्हा जी जे दर्शन से ऐसा लग रहा था कि क्या ही बोलू इतना प्यार से मुस्कुरा रहे थे और लग रहा था सारी समस्या का हल हो गया हो वैसे अच्छी किस्मत है मेरी की प्रभु दर्शन हुए या कहु उनकी मौजूदगी का एहसास।

                      किरण शर्मा 
                      प्रेम सुधा संथापिका

©Kiran Sharma
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