तेरी चिता को जलते देखा मानो मैं भी राख हो गई वो सरहद की हवा मेरा सब कुछ ले गई ।। तेरी अस्थियों की राख मेरी किस्मत लिख गई इश्क और जंग के खेल में मैं मोहरा बन गई हर लम्हा तेरे इंतजार मे बैठी थी मैं न जाने कब वो इम्तिहान बन गई।। वो बेचैन राते वो रातों का आलम वो मीठी सी यादें वो झुठे से वादे न जाने कब जिंदगी बन गई ।। वो पल इंतजार के अब मंजिल बन गई तुमसे मिलुँगी किसी मोड़ पर ये ख्वाहिश अब मोहब्बत बन गई।। ©Anjali Mishra For Dimple cheema who loved Vikram Batra #DearKanha