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यह दुनिया दर्पण की तरह है, उसमे बहुत करके अपना ही

यह दुनिया दर्पण की तरह है, उसमे बहुत करके अपना ही प्रतिबिम्ब दिखता है। जो जैसा होता है उसके मित्र एवं सहयोगी भी उसी स्तर के बढ़ते जाते हैं, परिस्थितियों एवं साधन भी क्रमशः उसी प्रकार के जुटते रहते हैं।। और व्यक्तित्व एवं वातावरण तदनुकूल ही ढल जाता है, जैसे कि भीतर की स्थिति होती है।।

©Ragini kushwaha
  यह दुनिया दर्पण है

यह दुनिया दर्पण है #Society

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