हकीकत पक्के मकानों की नीव देख तुमने मिट्टी का घर ठुकराया है, चंद पैसों से तुमने खुशियों का अनुमान लगाया है, अपनी हरकतों से आज मेरी जगह दिखाई है, और क्या हूं मैं ये हकीकत मुझको मेरी बताई है। मैं वो मिट्टी का गुड्डा हूं जिस से मन तुमने बहलाया है, तुम्हारे स्पर्श से ही तो इसमें भाव जाग आया है, तुमसे पहले ना दर्द था ना बातों मै कभी गहराई थी, इस हकीकत से परे मैंने अपनी ही दुनिया बसाई थी। ऐसा नहीं कि तुमसे पहले मै बहुत खुश रहता था, उस समय भी अपनी ख्वाहिशों से समझौता चलता था, उस वक़्त कोई था नहीं सुनने को, अकेले ही मुस्कुराता था, अपनी हकीकत पर कभी रोता तो कभी हसता गाता था। तुमने तो वो जख्म दिया है कि जीने की इच्छा ही नहीं है, बस अब सांस लेते है तो परिवार की खुशियां टिकीं है, तुम क्या समझोगे की मन किस तरह टूटा है, मेरे हकीकत ने मुझसे जाने क्या क्या लूटा है। अब मुझे मेरे हैसियत जाती और धरम पर क्रोध आता है, तेरे दिए दूरियों के कारण पर करुण रौष आता है, पर ये मेरी नहीं उस रब की गलती का असर है, तो फिर कैसे कहूं मुझे मेरी हकीकत पर फकर है। हक़ीक़त #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqquotes #yqdada #yqhindi #yqbhaskar #writersduniya