वो बचपन वाले शनिवार और इतवार ख़ुद में है कहानियों की एक लंबी कतार खिंच आई थी यौवन की दयार तक भर लाई थी वही सोंधी महक वाला ढेर सारा प्यार दुलार, मोहक मनुहार साप्ताहिक रसबोलियों के साथ तेल सिंगार कभी दादी तो कभी दीदी...लगा देती तेल कपाल में, बाल में...भीगी उंगलियाँ गुदगुदाती...सहलाती पोर-पोर भूलकर ख़ुद की थकान सींच देती मन अम्लान मन पा जाता कितना आराम! किस्से कहानियों कविताओं का दौर आम रसना भी कर लेती भरपूर व्यायाम एक नई उमंग तरंग भरा इतवार शुरू होता रंगोली से...मन पूरा रंगा-रंगा माँ की रसोईं में भी रंग थे तमाम देखते थे कभी भारत की खोज तो कभी देखते शक्तिमान... भोजन के बाद ठीक दोपहर की मूवी सब मिलकर संग देखते यों हो जाती शाम कोई कहो लौटा देगा क्या वो सुबहें वो शाम बचपन वो सतरंगी, अल्हड़ अपनी धुन और धाम इंतज़ार में कट जाती है शनिवार की शाम इतवार भी क्या! एक प्याली और अपना किस्सा आम अलसाई शाम औचक जगकर सहेजती सब काम फिर से सोमवार से शनिवार एक इंतज़ार के नाम #toyou#yesimissyou#thedaysbygone#saturdays#sundays#yqcolours#yqwaitingfor