मुस्कान से ग़म छुपाने का हुनर आता है, मुझे तूफ़ान से लड़ने का हुनर आता है। बेख़याली में यूँ गुज़रती हैं रातें कई, सुकून आता है जब तू नज़र आता है। बेज़ार हूँ बैठा तिरे इन्तज़ार में आज भी, मंज़िल हो कोई, हर रस्ते तिरा शजर आता है। ज़िन्दगी ख़ाक होने से बचा लेता हूँ अक्सर, लफ़्ज़ माँ आते ही दुआओं में असर आता है। बिख़र के यूँ अक्सर सिमट जाता हूँ ख़ुद में, हर मर्तबा मेरे हिस्से में क्यों समर आता है। बेज़ार- अप्रसन्न समर- युद्ध