करें जो संविधान की बात.. वो अक्सर करते हैं आघात... चंद पैसों में बिककर लोग... चाटते रहते हैं पदत्रांण... बढ़ाने वोट,बैंक-बैलेंस.. छीन लेते निर्बल के प्राण। भोगते रहते सदा विलास, वासना के जीवन में मग्न... क्रूरता के अप्रतिम प्रतिमान, आबरू को करते हैं नग्न। अनवरत करते जो संघर्ष, बचाने संविधान के प्राण... छले जाते श्वानों से सिंह, शहादत में होते निष्प्राण। शहादत पर सिंहो की नित्य, चढ़ाते हैं धन कुछ श्रीमान.... जान की कीमत क्या जाने, जो जानते नही देश की आन। विनय सुन चक्रपाणि भगवान, संग लेकर गीता का ज्ञान.... अवतरित हो जाओ इक बार.. मारने रावण को प्रभु राम। शेष है नहीं रही अब शक्ति, रोक लो ये अधर्म प्रतिपाल... मर गई मानवता है आज, बचा लो यह धरती नंदलाल। ©Avadh chauhan #Rose Saurabh Pandey