"ज़िन्दगी का फलसफा तो देखो यारों कभी धूप कभी छाओं तो कभी पानी है दो पल की यह ज़िन्दगी पल में मिट जानी है बोल दो शब्द प्यार के तुम भी ओ सनम जाने जीवन की डोर कब कट जानी है सांझ ढले इस जल में आग लग जानी है गुनगुनाते है जो धुन हम अक्सर इन शामों को रात की चमकती चाँदनी में धुल जानी है जीवन का यही परम सत्य है ओ सखा शमशान मैं बैठा तेरा शंकर ही औघर दानी है बहती है गँगा की धारा धरातल पे जहाँ एक दिन ज़िन्दगी वही बह जानी है जीवन की यही अमर कथा है यारों वो भूली दास्तान एक दिन फिर याद आनी है..." ©navroop singh #daastan