उर में दबी हुई टेक आज मुझे अपने में ही सारगर्भित होना कहके नजरें फेर लेने जैसी अमंद प्रयास कर रही है गरल तरंग की चाल में चलते हुए मेरे मन की धाराएँ उदधि की माप से परे तुम्हारे उदित स्वप्न और सारे सुम मणि जो उस छद की भित्ती भाँति मुझे कचोटती है एवं जिसमें क्षेम की अत्यन्ति हुई हो मेरे लिए अज्ञेय है तुम्हारी छपछपाती पलकें जो भींगी हो नयनों के सलिल से और वो स्याही जिससे तुमने मेरी नादानियों को पन्नों पे उकेरा है सहसा ही तुम्हारे कलम की निब विकीर्ण भी हो जाती होगी मेरे नाम पे... #विचलित_मन #कविता #कल्पना #yqbaba#yqdidi #mothertongue_verse