रात ओढ़ के रंगीनियां फैली है, सुन्न सड़कों पर कदम मैली है, मेरा खुद में लड़ना मेरा ही रकीब है, बेमन साए में यह शाम भी अजीब है। पहियों पर दौड़ती जिंदगी रफ्तार है, महज मानव है या फिर इश अवतार है, इंसा कहूं या कहूं की खुदा करीब है, मेहरों वाली यह शाम भी अजीब है। चाय के चम्मचों में बातों कि मिठास है, चुस्कियों से भी ना मिटी कुछ ऐसी प्यास है, तुम मर्ज हो मेरा या मन ही तेरा मरीज है, जश्न शमशान में यह शाम भी अजीब है। खुदा का घर खुला है पर बुलावा सबके हक़ में नहीं, हमने तो हरबार कोशिश कि पर सच शक में नहीं, पाक मन का घर पर नापाक उसकी दहलीज है, पापी हम है और यह शाम भी अजीब है। नमस्कार लेखकों।😊 हमारे #rzhindi पोस्ट पर Collab करें और अपने शब्दों से अपने विचार व्यक्त करें । #rzयह_शाम_भी_अजीब_है #yqrestzone #yqdidi #collabwithrestzone #restzone #yourquoteandmine Collaborating with Rest Zone #yqbhaskar