फिर उठी फिजा में महक मुहब्बत की , कोई रात भर तारो को गिनता रहा है। उसे मालूम ही नही के उसे कोई चाहता भी है, वो तो उसके ही ख़्वाबो में जागता रहा है। सारा शहर वाकिफ़ है अब मेरी आँखों की हया से, सुनो दुआओ में तुझे कोई मांगता रहा है। आँखों को अब कोई चेहरा जचता ही नही, एक तू ही मेरी मंजिल तू ही मेरा इरादा रहा है। आशीष ख्वाहिश #poems #dard #kavita #shaayri #gajal कविता