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रेत की मशक्कत (भाग 2) हर बार की तरह हितेश घर बनात

रेत की मशक्कत (भाग 2)

हर बार की तरह हितेश घर बनाता है और इस बार वो अपने दोस्त आरव के घर और उसकी होड़ से दूर जाकर लहरों के पास जाकर बनाता है | इस बार बिना कोई खौफ़ लिये वे अपने मन अौर दिल को खुश करने हेतु वो घर बनाता है | इस बार उसके मन में पानी की लहरों के लिये एक अजीबोगरीब दया की भवना आ जाती है | वो सोचता है लहरो से रेत को छूना और बहा ले जाना समुद्र का प्राकृतिक स्वाभाव है | और मेरा स्वाभाव भी इस समय अपने दिल को छूना है | इसीलिये अपनी खुशी को इस बार ताक पे न रख अपनी मेहनत से आरव के घर से दूर जाकर लहरों के पास घर बनाता है |
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रेत की मशक्कत (भाग 2)

हर बार की तरह हितेश घर बनाता है और इस बार वो अपने दोस्त आरव के घर और उसकी होड़ से दूर जाकर लहरों के पास जाकर बनाता है | इस बार बिना कोई खौफ़ लिये वे अपने मन अौर दिल को खुश करने हेतु वो घर बनाता है | इस बार उसके मन में पानी की लहरों के लिये एक अजीबोगरीब दया की भवना आ जाती है | वो सोचता है लहरो से रेत को छूना और बहा ले जाना समुद्र का प्राकृतिक स्वाभाव है | और मेरा स्वाभाव भी इस समय अपने दिल को छूना है | इसीलिये अपनी खुशी को इस बार ताक पे न रख अपनी मेहनत से आरव के घर से दूर जाकर लहरों के पास घर बनाता है |
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