रूकना नहीं, बहुत वक्त हैं शाम आने के लिए मैं दिन हूं तेरा, पर हूं बस गुजर जाने के लिए। पत्थर की ठोकर से संभले हो, तो शुक्रिया कहो चंद मिलती हैं मोहलत,यहां संभल जाने के लिए । जिंदादिल पर तुम्हारी आसमां भी रक्स़ करे वरना आये तो सब हैं,जमीं पर मर जाने के लिए । मन्नत के धागे बांध कर, इत्मीनान तो कर लेना पर सब करना तुम्हें ही, कुछ कर जाने के लिए । अब के दुआये उनकी काम कर जाये तो अच्छा है कितना डूबेगें हम, दरिया पार कर जाने के लिए । इश्क़ लिखे बिना, दिल को तसल्ली नहीं है लोकेंद्र ये शे़र जरूरी हैं उनका दर्द कम कर जाने के लिए । लोकेंद्र की कलम से #लोकेंद्र की कलम से