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राष्ट्र बेंच कर खाने वाली बोली फिर तैयार हुई है। ह

राष्ट्र बेंच कर खाने वाली बोली फिर तैयार हुई है।
हाँथ पसारे भीख मागंते टोली फिर तैयार हुई है। राष्ट्र बेंच कर खाने वाली बोली फिर तैयार हुई है।
हाँथ पसारे भीख मागंते टोली फिर तैयार हुई है।

देश बचाना है हमको ये खेल वही दोहराएँ।
आज इन्हें जी भर देखो,फिर पाँच बरस ना आएंगे।
जयकारों में अक्सर असली मुद्दे भी दब जाते हैं।
राजनितियों में सेना के नारे भी लग जाते हैं।
कितना खून गिरा सीमा पर ये बिसात क्या पाओगे।
राष्ट्र बेंच कर खाने वाली बोली फिर तैयार हुई है।
हाँथ पसारे भीख मागंते टोली फिर तैयार हुई है। राष्ट्र बेंच कर खाने वाली बोली फिर तैयार हुई है।
हाँथ पसारे भीख मागंते टोली फिर तैयार हुई है।

देश बचाना है हमको ये खेल वही दोहराएँ।
आज इन्हें जी भर देखो,फिर पाँच बरस ना आएंगे।
जयकारों में अक्सर असली मुद्दे भी दब जाते हैं।
राजनितियों में सेना के नारे भी लग जाते हैं।
कितना खून गिरा सीमा पर ये बिसात क्या पाओगे।
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