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परछाई मेरे तन से, कुछ दूर सी रहती है, आंखों में तु

परछाई मेरे तन से, कुछ दूर सी रहती है,
आंखों में तुम्हें देखकर, कुछ घूरती रहती है।

ये कौन हमसफ़र है भाई, जो हमसे वफ़ादार
 है,हमको परे खड़ा कर उसको गले लगा लिया।

वैसे तो राजगार है वो, ताउम्र मेरी हमसफर,
सांसों में तुम्हें भरकर ,मैंने जिंदगी बना लिया।

©Anuj Ray
  #परछाईं