ये रिमझिम सा सावन ये कुवें का पानी! कैसे मैं कह दूं अपनी कहानी!! ये घिसी है रस्सी ,ये ज़ुल्मत की निशानी! कैसे मैं कह दूं अपनी कहानी!! ये दरिया की मस्तियाँ मेरे बुजुर्गों की अस्थियाँ! डूबी है इनमें मेरे हर ज़ुस्तज़ु की कश्तियाँ!! आंखों में नूर ,चेहरे पर नजाकत! कैसे बया करूँ ये लफ़्ज़ों की शराफत!! ये दिलकश नजारे ये महफ़िल की रवानी! ऐ हमसफ़र तू ही बता कैसे कहूँ मैं अपनी कहानी!! #sjatt1401 #मुसाफ़िर की कलम