दिखावे का नही, अन्तर मन से फूट फूट कर रोते देखा है ये शमशान है साहब यहाँ पे लोगों को टूटते बिखरते देखा है ।। चाहें सुख के हो साथी, या फिर हो दुख का हमदर्द सभी को बिलखते देखा है, ये शमशान है साहब यहाँ पे कुछ उम्मीदों को टूटते तो कुछ जुड़ते हुए देखा है।। पाने को वो चकाचौंध खुद - ब - खुद दुरी बना ली तुने, दो थान कफ़न की ही तो जरूरत थी न, पर ऐ मानुष पैसो के लिये तुझे रिश्तों को बेचते देखा है, ये शमशान है साहब, यहां पे सिर्फ रिश्तें ही साथ निभाते हैं, बाकी दौलत हो या शोहरत सबको यहीं पीछे छूटते देखा है।। क्या ऊंचा क्या नीचा ,कौन छोटा कौन बड़ा , बात जब जनाज़े की आयी तो सबको एक ही कपड़े मे लिपटा देखा है, ये शमशान है साहब, यहाँ पे कोई गरीब कोई अमीर नहीं होता है, सबको राख़ बनके इसी मिट्टी मे मिलते देखा है।। गुज़रते देखा है बहुतों के यहां से, पर किसी ने नज़रें न मिलाई, अरे! ये कहा आ गये प्रणाम करके सबने दूरियां है बनाई, आज यूहीं एक सवाल उठा मन में, लोगों की असलियत दिखायी है मैनें, मुझसे ही मुह चुराते देखा है।।। मैं ही वो शमशान हुँ साहब मैने रिश्तों की गहराई के साथ साथ जिवन और मरण के सच को उजागर होते देखा है।।।। #swaraj