बरसात की एक रात एक अंधेरी रात में मूसलाधार बारिश हो रही थीं। रात के बादलों से आसमान ढका हुआ था जिसकी वजह से रात और अंधेरी हो गई थीं। आसमान में चमकती हुई गरजते बादल और कड़कती बिजली मन में डर जगाने के लिए काफ़ी थीं। शरीर में कंपकपाहट पैदा करने वाली इस बारिश में वेदान्तिका छाते से ढकी खुद को बारिश से बचाते हुए तेज कदमों से चलती जा रही थीं। उसके कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे। इतनी रात में कोई टैक्सी या बस नहीं मिल सकती थी इसलिए वो इस रात यही ठहरने के लिए कोई सराय या छोटा होटल ढूंढ रही थीं। एक अंधेरी रात में मूसलाधार बारिश हो रही थीं। रात के बादलों से आसमान ढका हुआ था जिसकी वजह से रात और अंधेरी हो गई थीं। आसमान में चमकती हुई गरजते बादल और कड़कती बिजली मन में डर जगाने के लिए काफ़ी थीं। शरीर में कंपकपाहट पैदा करने वाली इस बारिश में वेदान्तिका छाते से ढकी खुद को बारिश से बचाते हुए तेज कदमों से चलती जा रही थीं। उसके कपड़े पूरी तरह भीग चुके थे। इतनी रात में कोई टैक्सी या बस नहीं मिल सकती थी इसलिए वो इस रात यही ठहरने के लिए कोई सराय या छोटा होटल ढूंढ रही थीं। थोड़ी दूर तक चलने के बाद उसे स्वीट ड्रीम नाम का एक छोटा सा होटल दिखाई दिया। उसने राहत की सांस ली और यह प्रार्थना करने लगी कि वहाँ पर एक कमरा उसे ठहरने के लिये मिल जाए। वो जल्दी से होटल के अंदर चली आई। उसने अपना छाता नीचे रखा और रिसेप्शन पर किसी के आने का इंतजार करने लगी। थोड़ी देर बाद रिसेप्शन पर एक सत्तर-अस्सी साल के एक बुजुर्ग आये। उन्होंने वेदान्तिका को ऊपर से नीचे तक देखा। वेदान्तिका को थोड़ा अजीब लगा। वह सोच रही थीं कि उसे यहां रुकना चाहिए या नहीं लेकिन अब वह बाहर भी नहीं जाना चाहती थीं।