नदियाँ रुकतीं न किनारे पर, वे सलिल मिलन को बहती हैं। तट उनके बैठे समझो यह, धर चलनी क्यों कर गहती हैं।। प्रस्फ़ूटित होतीं पर्वत से, काटें लय से चट्टानों को। बस एक चाह दृढ़ चलना है, भर वृष्टि को नज़रानों को।। "नदी का बहाव" हलचल के बावज़ूद आगे बढ़ाने वाली एक लघु कविता। इस कविता की प्रेरणा मुझे Swati Wrishti जी के quote से प्राप्त हुई। इस उपलक्ष्य में स्वाति जी को सहृदय आभार। #alokstates #river #inspiration #yqbaba #yqdidi #ज़रूरीहै #जागतेरहो #hindipoetry