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वो भी क्या दौर था। जब मैं कमजोर था। मां की आंखों

 वो भी क्या दौर था।
जब मैं कमजोर था।
मां की आंखों में आसूं और,
पिता की उम्मीदों का तोर था।
चंद सिक्के लिए हाथों में,
निकला मंज़िल की ओर था।
तब नही था पता कि,
रास्ता बेहद घनघोर था।
जीतना था मुझे हर हाल में ,
परंतु लक्ष्य का ना कोई झोर था।
इस धर्म युद्ध में मैंने,
खुद को संभाला पुखजोर था ।
विश्वास और अथक प्रयास से प्राप्त किया जो,
चहुओर बस उसी का शोर था।

रश्मि वत्स।

©Rashmi Vats
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