सुनो, इस झील ने बड़ी गहराई से तुम्हारी यादें संभाल रखी है, मैं जब भी यहां आता हूं, ऐसा लगता है तुम साथ हो, शहर के शोर से बोहोत दूर, एकांत की शांति सी हो तुम, झील की मंद तरंगों से होकर हवा जब जब छूकर गुजरती है मुझे, ऐसा लगता है सपर्श है तुम्हारा, तुम्हारा सपर्श अवगत कराता है उपस्तिथि तुम्हारी, परंतु यह झील और मैं दोनों जानते है नहीं हों तुम... ©Ajay Chaurasiya #झील