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वो चेहरा जो कायनात में सबसे अलग था, मैं थी जमीं पर

वो चेहरा जो कायनात में सबसे अलग था, मैं थी जमीं पर और वो मेरा फलक था, आज है वो तिनका जो छूता  है रोज़ ही किसी नए सागर को , शायद उसे किसी और चेहरे का तलब था

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