मोहब्बत और ऐतबार मोहब्बत और ऐतबार में ताल्लुक नही होता मोहब्बत कायनात की हर शै से मुमकिन है मोहब्बत मालिक की नेमत है अगर मालिक पर यकीन है ऐतबार उम्मीद है जो सिर्फ रखो परवरदिगार से ऐतबार करना है तो करो लेकिन सिर्फ और सिर्फ परवरदिगार पे किसी पर भी ऐतबार करना बेकार है सच्ची मोहब्बत के जज़्बे को यही दरकार है कुछ शख्स जो मोहब्बत नही करते फिजूल ही किसी से ऐतबार की उम्मीद रखते मोहब्बत की नही जाती बस हो जाती है जब परवरदिगार के दर से नेमत गुल खिलाती है! जरिए:-रविंद्र सिंघ शाहू. #मोहब्ब और ऐतबार.