बिन गलती के भि हमने सौ जुते खाए हे... ओर गलती करके भि उसको "फटकार" नही मिलती... हर बार ही सच्चे होकर हमने अग्नी परिक्षा दी हे... ओर झुठा होकर भि सिख उसे "हरबार" नही मिलती... झुठी आस के पिछे हमने घर को छोड दीया... भुल गए थे घर की खुशी "बाजार" नही मिलती... पर ये भि खुब हुआ हमने घर से निकल कर देखा जहा... जो सिख मिली है हमे यहा वो "घरबार" नही मिलती..... जिन्दगी ### I'm# not ##a stone##