छम छम बरसती सबनम, क्या चांदनी रात है, मैं पिरोहता रहा अल्फाज़ क्या हसीं ज़माल है.! इस कश्मकश में रुक जाती, हर मिसरे पर कलम, चांदनी मेरे महबूब की, उस चांद से भी ज़लाल है.! मैं लिखता रहा गजल, चेहरे–ए–यार देख देख, कैसे होगी खबर,वो नीद में इस कदर मश्ग़ूल है.! जिस दिल–ए–दयार में, हमने उसे बैठाया है, उस दिल–ए–दयार से भी ज्यादा वो बेमिशाल है.! लिखने गया गजल, कलीम इश्क़ हो गया, चहरे की उसकी रोनाक बड़ी ही कमाल है.! अरे तोड़ो ज़माने के रीति रियाज़, और करीब आओ, मुकम्मल न होने देंगे इश्क़, ये उनका पुराना ख्याल है.! ©कलीम शाहजहांपुरी (साहिल) #MusicLove छम छम बरसती सबनम..