आज महीना खत्म होने को था, सारे काम निपटाकर वो, जेठ की दुपहरी मे, अपनी थकान और नींद को, साड़ी के पल्लू मे पोंछकर, सबका हिसाब करने, साल का कैलेंडर लेकर बैठ गयी, अपनी पक्की सहेली आईने के पास, जो मौन थी, पर जो जानती थी, उसके मन की सारी बात, एक ही घर मे रहते हुए, जिससे मिलने वो आयी थी, महीने भर बाद, क्यों कि उससे मिलना, उसके रोज के कामों मे था, जो न आता बार-बार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_में क्योंकि आगे की पीढ़ियाँ माँगेंगी उस स्त्री से "रोने का हिसाब" #रोने_का_हिसाब आज महीना खत्म होने को था, सारे काम निपटाकर वो,