ना जानें कैसी ये छीली छीली से आत्माएं सबकी दिखती है छलने वालो की भी क्या खूब कामाई दिखती हैं , एक वो जो हर रोज मरहम लगाता हैं और कोई एक रोज वहीं कुरेद जाता हैं मैं नासूर नहीं बनने देता हूँ हूँ प्रेम मैं सब खुदमे समेट लेता हूँ क्या तमस क्या आंसू क्या दुख पल भर में पी लेता हूं , तुम खुश रहो उसी के लिए प्रतिपल मैं सारी विपदाएँ झेल लेता हूँ शिव की महिमा शिव सा प्रेम कहीं , कहीं नहीं हैं जगत में , देखों इसलिए ही मैं सारे खेल रचता हूँ #neerajwrites #shiva #shivpremi