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बेसमझ, शरारती जान बुझ कर, सिखों का मज़ाक उड़ाते। ख

बेसमझ, शरारती जान बुझ कर,
सिखों का मज़ाक उड़ाते।
ख़ुश होते हैं ऐसी बातें कर,
उन्हें बहुत सताते, तड़पाते हैं।

मुर्ख, अनजान इतिहास से,
ताली पे ताली ठोकते हैं।
कुछ लोग मिल जाते साथ इनके,
ना इनको कभी रोकते, कोसते हैं।

©Sarbjit sangrurvi बेसमझ, शरारती जान बुझ कर,
सिखों का मज़ाक उड़ाते।
ख़ुश होते हैं ऐसी बातें कर,
उन्हें बहुत सताते, तड़पाते हैं।

मुर्ख, अनजान इतिहास से,
ताली पे ताली ठोकते हैं।
कुछ लोग मिल जाते साथ इनके,
बेसमझ, शरारती जान बुझ कर,
सिखों का मज़ाक उड़ाते।
ख़ुश होते हैं ऐसी बातें कर,
उन्हें बहुत सताते, तड़पाते हैं।

मुर्ख, अनजान इतिहास से,
ताली पे ताली ठोकते हैं।
कुछ लोग मिल जाते साथ इनके,
ना इनको कभी रोकते, कोसते हैं।

©Sarbjit sangrurvi बेसमझ, शरारती जान बुझ कर,
सिखों का मज़ाक उड़ाते।
ख़ुश होते हैं ऐसी बातें कर,
उन्हें बहुत सताते, तड़पाते हैं।

मुर्ख, अनजान इतिहास से,
ताली पे ताली ठोकते हैं।
कुछ लोग मिल जाते साथ इनके,