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दौर (दोहे) कलयुग के इस दौर में, खूब लूटते लोग। मद

दौर (दोहे)

कलयुग के इस दौर में, खूब लूटते लोग।
मदिरा भी सेवन करें, और पालते रोग।।

कैसा ये अब दौर है, टूट गई जो आस।
लाचारी में जी रहे, नहीं रहा विश्वास।।

डरा रहे सब को यही, लेकर वे हथियार।
छीना-झपटी भी करें, भूल सभी संस्कार।।

दहशत भी फैला रहे, खूब कमाते पाप।
खोल पिटारा जुर्म का, छोड़ रहे हैं छाप।।

तरह-तरह के जुर्म हैं, दिखा रहे शैतान।
किस-किस की गणना करें, रहा नहीं अनुमान।।

इन्हीं खबर से है भरा, पूरा ही अखबार।
पनप रहा ये दौर अब, लेकर अत्याचार।।

घबराया इंसान है, देखा जो शैतान।
जीवन संकट में पड़ा, कृपा करो भगवान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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दौर (दोहे)

कलयुग के इस दौर में, खूब लूटते लोग।
मदिरा भी सेवन करें, और पालते रोग।।

कैसा ये अब दौर है, टूट गई जो आस।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

New Creator

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