वो अवाज़ जो ज़ख्मी है पर सारगर्भित है वो असहाए पीड़ा जो हर पल खुशी से वान्छित है वो जो सार्वभौमिक सत्य सा सूर्यवंशी है वो जो निज हृदय कुंज मे सृष्टिकर्ता को आन्शित है वो जो नभ के तारे निशा मे सर्व व्यापित हैं वो जो द्विजराज त्रियामा मे सदा द्योतित है वो जो नयन पुलकित अश्रुओं से चिर प्रवाहित हैं समय सीमा तय है जहान सृजन के अंत मे जहां कयी महारानी बनी इस भूखंड के खंड मे एक टूटा हुआ पहिया लिये मृत्युंजयी तत्व है जिन महारथियों के लिये निहत्थे पर वार करने का महत्व है आज इस सभा मे दुर्योधन का दुस्साहस प्रबल है आज श्री कृष्ण का साथ भी जहाँ निश्फल है ऐसे कलयुग मे पधारे हैं हम हे मनुष्य जहाँ द्रौपदी का चीर हरण नही किंतु मान हरण है और इस पूरे साम्राज्य मे स्थित त्राहि त्राहि का रुदन है आज कोई उन पंखुडियों को भी थोड़ा बल दे उन कोमल कलियों को हे ईश्वर तु ही फल दे जिन के देह पर दानवों का निर्मम आक्रमण है जिन कोढीत दूषित जीवन मे केवल संक्रमण है हे कृष्णा मैने पुकारा है फिर से वो आँचल लहराने दो कयी द्रौपदियों के हरण को हरने अपना कोई कल तो आने दो बस तुम पर मेरी निष्ठा है मेरा संपूर्ण चिंतन मनन है कालिख के सौदगर, सुदर्शन चक्र के हों, ये मेरा आवाहन है।