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क्यूँ हर बार मन उदास हो जाता हैं, तुम्हारी कड़वी ब

क्यूँ हर बार मन उदास हो जाता हैं,
 तुम्हारी कड़वी बातों से ।
बड़े पत्थर का बोझ मन मे घर कर जाता हैं, 
काश तुम अबोध ना होते मेरे दर्द से।
कोशिश तो करते है ,पर समझ नहीं आता है, 
कैसे निकलें इस अंधियारे से। 
हिम्मत से इस पत्थर को कंकड बना के फेंक देना है ,
रौशनी होगी तभी, खुद अपने मन मे दीपक जलाने से।

©Dr Rekha Kumari 
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